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“ब्रिटिश संसद एक बाँझ औरत जैसी है, वह कुछ उत्पन्न नहीं कर सकती।”-गांधी

“The British Parliament is like a barren woman, it cannot produce anything.”- Gandhi

“ब्रिटिश संसद एक बाँझ औरत जैसी है, वह कुछ उत्पन्न नहीं कर सकती।”- महात्मा गांधी

यह कथन महात्मा गांधी का है और यह  ‘हिंद स्वराज (Hind Swaraj)’, 1909 नामक उनकी प्रसिद्ध पुस्तक में मिलता है।

‘हिंद स्वराज’ महात्मा गांधी द्वारा 1909 में लिखी गई एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और दार्शनिक कृति है। इसे गांधी जी ने मूलतः गुजराती में लिखा था और इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद भी उन्होंने स्वयं किया। यह पुस्तक उनके विचारों का सार है और इसमें भारत, आधुनिकता, पश्चिमी सभ्यता, स्वतंत्रता और स्वराज (स्व-शासन) के बारे में उनके दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया गया है।

गांधी जी का मानना था कि:

  • ब्रिटिश संसद सिर्फ राजनीतिक चालबाज़ी और दलगत राजनीति से ग्रस्त है।
  • वह जनता के कल्याण हेतु कोई ठोस कार्य नहीं करती।
  • वह सिर्फ “प्रतिक्रिया देने वाली संस्था” है, जो कभी खुद से कुछ उत्पन्न नहीं करती।
  • इसलिए “वह एक बाँझ औरत है, और एक वेश्या भी, क्योंकि वह केवल सत्ता में आने वालों की इच्छाओं के अनुसार बदलती रहती है।” – (हिंद स्वराज, अध्याय 5: ‘The Condition of England’)

गांधी की प्रमुख राजनीतिक अवधारणाएँ

अवधारणाविवरण
सत्य (Truth)गांधी का सबसे मूलभूत सिद्धांत। उन्होंने कहा – “God is Truth” से बदलकर “Truth is God”। सत्य को ईश्वर के रूप में देखा।
अहिंसा (Non-violence)केवल शारीरिक हिंसा नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म से भी किसी को हानि न पहुँचाना। यह गांधी की राजनीति का मूल आधार था।
स्वराज (Swaraj)गांधी के अनुसार स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आत्म-शासन (self-rule), नैतिक स्वतंत्रता, और आत्मनिर्भरता है।
सर्वोदय (Sarvodaya)“सभी का उदय”। यह रचनात्मक समाज की परिकल्पना है जिसमें समाज के अंतिम व्यक्ति का भी कल्याण हो। प्रेरणा: John Ruskin’s ‘Unto This Last’।
ट्रस्टीशिप (Trusteeship)पूंजीपतियों को समाज का ट्रस्टी बनकर संसाधनों का न्यायपूर्ण उपयोग करना चाहिए। यह हिंसा के बिना वर्ग संघर्ष का विकल्प है।
ग्राम स्वराज (Village Swaraj)विकेन्द्रीकरण पर बल। प्रत्येक गाँव एक आत्मनिर्भर इकाई होना चाहिए जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, उत्पादन आदि स्वयं नियंत्रित हो।
सत्याग्रह (Satyagraha)अहिंसक संघर्ष का तरीका जिसमें आत्मबल से अन्याय का विरोध किया जाता है। यह व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तर पर लागू होता है।
नैतिक राजनीति (Ethical Politics)गांधी के अनुसार राजनीति नैतिकता से अलग नहीं हो सकती। राजनीति का उद्देश्य सेवा, सत्य और न्याय होना चाहिए।
छुआछूत विरोध और हरिजन सेवागांधी ने अस्पृश्यता को पाप कहा और हरिजनों (दलितों) के लिए समान अधिकार की मांग की।
नारी दृष्टिकोण (Women’s Empowerment)गांधी ने महिलाओं को सत्याग्रह, आंदोलन और निर्णय में सक्रिय भूमिका दी। उन्हें नैतिक शक्ति का स्रोत माना।

महत्वपूर्ण कथन

  • “My life is my message.”
  • “The best way to find yourself is to lose yourself in the service of others.”
  • “There is no politics without religion.” (Note: Here “religion” means dharma or ethics, not organized religion.)

इस पुस्तक के मुख्य विषय:

  • गांधी जी के अनुसार स्वराज केवल ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि आत्म-नियंत्रण और नैतिक व आत्मिक स्वतंत्रता है। उन्होंने कहा कि “सच्चा स्वराज आत्म-शासन है, केवल शासन परिवर्तन नहीं।”
  • उन्होंने पश्चिमी सभ्यता को भौतिकवादी, नैतिक रूप से पतित और आत्मा-विरोधी बताया। उनके अनुसार, यह सभ्यता मनुष्य को मशीन बना देती है और उसकी आत्मा को नष्ट कर देती है।
  • गांधी जी ने मशीनों, रेल, डॉक्टरों और वकीलों की भूमिका की आलोचना की। उनका मानना था कि ये आधुनिक संस्थान भारतीय समाज को कमजोर और भ्रष्ट बना रहे हैं।
  • ‘हिंद स्वराज’ में सत्य (सत्यनिष्ठा) और अहिंसा (हिंसा का त्याग) को जीवन का मूल आधार बताया गया है। ये गांधी जी के राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों के भी स्तंभ बने।
  • गांधी जी ने भारतीय परंपराओं, ग्राम्य जीवन और नैतिक मूल्यों की प्रशंसा की और इसे आत्मिक उन्नति का मार्ग बताया।
  • उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता को अधूरी मानते हुए कहा कि जब तक लोग नैतिक और आत्मिक रूप से स्वतंत्र नहीं होंगे, तब तक सच्चा स्वराज नहीं मिल सकता।
  • उन्होंने तर्क दिया कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और आत्म-विकास होना चाहिए।

अंत: ‘हिंद स्वराज’ एक चेतावनी है, आधुनिकता के नाम पर आत्मा की क्षति से बचने की। यह भारत को एक नैतिक, आत्मनिर्भर, और ग्राम्य समाज बनाने की दिशा में गांधी जी की विचारधारा का दस्तावेज है।

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