भारतीय विदेश नीति में शक्ति की अवधारणा लंबे समय से विचार-विमर्श का विषय रही है। परंपरागत रूप से शक्ति का आशय सैन्य बल, आर्थिक संसाधनों और तकनीकी प्रभुत्व से लगाया जाता था, जिसे हार्ड पावर कहा गया। किंतु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अमेरिकी विद्वान जोसेफ नाई ने शक्ति का एक नया रूप प्रस्तुत किया जिसे सॉफ्ट पावर नाम दिया गया। सॉफ्ट पावर का अर्थ है ऐसी क्षमता जिसके द्वारा कोई देश बल प्रयोग के बिना ही अपनी संस्कृति, मूल्यों और नीतियों के आकर्षण से दूसरे देशों को प्रभावित कर सके। यह विचार आधुनिक वैश्विक राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि अब राष्ट्र केवल हथियारों और धन से नहीं, बल्कि अपने सांस्कृतिक और वैचारिक आकर्षण से भी प्रभाव जमाते हैं।
भारत के लिए सॉफ्ट पावर की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है क्योंकि यह देश हजारों वर्षों की सभ्यतागत विरासत, धार्मिक सहिष्णुता और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतिनिधि है। भारत की विदेश नीति में सॉफ्ट पावर केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता है। सैन्य और आर्थिक क्षमता की सीमाओं के बीच भारत ने अपने सांस्कृतिक प्रभाव, लोकतांत्रिक छवि और प्रवासी समुदाय की ताकत के माध्यम से एक ऐसा सशक्त आधार निर्मित किया है जो उसे विश्व राजनीति में एक अलग पहचान दिलाता है।
भारत की सॉफ्ट पावर का सबसे प्राचीन और स्थायी स्रोत इसकी सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत है। वेद–उपनिषद, गीता, बौद्ध और जैन दर्शन, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ विश्वभर के विद्वानों के अध्ययन का विषय रहे हैं। बौद्ध धर्म ने एशिया के देशों जैसे जापान, थाईलैंड, श्रीलंका और म्यांमार के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को गहराई प्रदान की है। इसी प्रकार भारत की कला, संगीत, नृत्य और भाषा वैश्विक स्तर पर आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।
योग और आयुर्वेद भारत की सॉफ्ट पावर के आधुनिक प्रतीक हैं। योग केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन की साधना है। इसकी वैश्विक लोकप्रियता का अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2015 से 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया। यह भारत की सांस्कृतिक कूटनीति की बड़ी उपलब्धि है। इसी तरह आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली ने वैश्विक स्वास्थ्य विमर्श में भारत को एक विशिष्ट स्थान दिलाया है।
भारतीय सिनेमा, विशेषकर बॉलीवुड, भी भारत की सॉफ्ट पावर का महत्वपूर्ण साधन है। भारतीय फिल्मों का आकर्षण केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एशिया, अफ्रीका, मध्य एशिया और रूस तक फैल गया। फिल्मों के माध्यम से भारतीय जीवनशैली, संगीत, नृत्य और मूल्यों की झलक दुनिया भर तक पहुँचती है। यही कारण है कि कई देशों में भारत की छवि एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में गहराई से जमी है।
लोकतंत्र भारत की विदेश नीति में सॉफ्ट पावर का एक और प्रमुख आयाम है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत की पहचान बहुलतावाद, सहिष्णुता और विविधता में एकता की रही है। यह छवि विकासशील देशों के लिए प्रेरणादायी है और पश्चिमी देशों में भी सम्मान अर्जित करती है। लोकतांत्रिक परंपरा, स्वतंत्र न्यायपालिका और सक्रिय मीडिया भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
भारत की सॉफ्ट पावर में प्रवासी भारतीय समुदाय का योगदान भी उल्लेखनीय है। विश्वभर में लगभग 3.2 करोड़ भारतीय मूल के लोग रहते हैं। यह समुदाय भारत की संस्कृति, भाषा और परंपराओं का प्रचारक है। साथ ही वे आर्थिक और तकनीकी सहयोग के माध्यम से भारत की विदेश नीति को सशक्त करते हैं। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में बसे प्रवासी भारतीय न केवल आर्थिक योगदान देते हैं बल्कि वहां की राजनीति और समाज में भी भारत की सकारात्मक छवि गढ़ते हैं।
संस्थागत स्तर पर भी भारत ने सॉफ्ट पावर को बढ़ावा दिया है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) विदेशी देशों में भाषा शिक्षण, सांस्कृतिक कार्यक्रम और छात्रवृत्ति योजनाओं के माध्यम से भारत की छवि निर्माण करती है। ‘इनक्रेडिबल इंडिया’ अभियान पर्यटन के जरिए भारत की सांस्कृतिक विविधता को विश्वभर में प्रचारित करता है। प्रोजेक्ट मौसमी जैसे उपक्रम भारतीय महासागर क्षेत्र के देशों के साथ सभ्यतागत रिश्तों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करते हैं। नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार भी इसी दिशा का एक उदाहरण है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काल में सॉफ्ट पावर का प्रयोग विदेश नीति में और अधिक सक्रिय तथा योजनाबद्ध हुआ है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का वैश्विक आयोजन भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि माना जाता है। मोदी सरकार ने अफ्रीका, लातिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में विकास सहयोग, आईटी प्रशिक्षण और शिक्षा के जरिए भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा दिया। इसी तरह विदेश यात्राओं के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों और भारतीय भोजन का विशेष प्रदर्शन भी सॉफ्ट पावर का हिस्सा रहा।
फिर भी भारत की सॉफ्ट पावर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गरीबी, असमानता, जातिगत हिंसा और धार्मिक तनाव जैसी आंतरिक समस्याएँ अंतरराष्ट्रीय छवि को कमजोर करती हैं। संस्थागत स्तर पर ICCR और अन्य सांस्कृतिक संगठनों के पास सीमित संसाधन और बजट है जिससे उनकी प्रभावशीलता घट जाती है। डिजिटल प्रचार और सूचना तकनीक के इस्तेमाल में भारत अभी भी अमेरिका और चीन से पीछे है। साथ ही विदेश नीति में निरंतरता का अभाव भी सॉफ्ट पावर की स्थिरता को प्रभावित करता है।
विदेश नीति में सॉफ्ट पावर के प्रत्यक्ष उदाहरण स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। योग दिवस का आयोजन, भूटान और श्रीलंका में बौद्ध सर्किट परियोजना, भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन, प्रोजेक्ट मौसमी और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह ऐसे उपक्रम हैं जिन्होंने भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर सुदृढ़ किया। ये उदाहरण बताते हैं कि किस प्रकार सांस्कृतिक और सभ्यतागत संसाधनों के माध्यम से भी विदेश नीति को प्रभावी बनाया जा सकता है।
अंततः यह कहा जा सकता है कि विदेश नीति केवल सैन्य और आर्थिक शक्ति पर आधारित नहीं होती, बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक आकर्षण भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत ने अपनी सभ्यता, लोकतांत्रिक मूल्यों, प्रवासी समुदाय और सांस्कृतिक विविधता के माध्यम से एक ऐसा सशक्त सॉफ्ट पावर आधार तैयार किया है जो उसे विश्व राजनीति में विशिष्ट पहचान प्रदान करता है। यदि भारत अपनी आंतरिक चुनौतियों का समाधान कर सके, डिजिटल कूटनीति को और प्रभावी बनाए तथा संस्थागत ढाँचे को सुदृढ़ करे, तो आने वाले वर्षों में वह सॉफ्ट पावर के माध्यम से वैश्विक राजनीति में और अधिक सम्मान, विश्वास और सहयोग अर्जित कर सकता है। यही कारण है कि सॉफ्ट पावर भारतीय विदेश नीति का न केवल एक सहायक साधन है बल्कि उसकी एक स्थायी और रणनीतिक आवश्यकता भी है।
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